Homeराजनीतिसमाजवादी पार्टी के 'पीडीए' में बीजेपी कर रही है सेंधमारी!

समाजवादी पार्टी के ‘पीडीए’ में बीजेपी कर रही है सेंधमारी!

लाइव सत्यकाम न्यूज,लखनऊ(रोशन मिश्रा रोशनाई):2024 में सम्पन्न लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी और कांग्रेस की आपसी तालमेल की बदौलत बीजेपी को मात्र 33 सीटों पर जीत हासिल हो सकी जबकि सपा को 37 और कांग्रेस को आधा दर्जन सीटों का फ़ायदा मिला। उस समय कांग्रेसी दिग्गज राहुल गांधी की भारत जोड़ो न्याय यात्रा ने जनता के बीच ख़ासी लोकप्रियता हासिल की थी। नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की दोस्ती ने उत्तर प्रदेश में एक अरसे बाद यहां की राजनीति में एक नया अध्याय लिखा था। बात 2019 की लोकसभा चुनाव के परिणाम की करें तो उत्तर प्रदेश में बीजेपी ने 78 सीटों पर चुनाव लड़ा जिसमें वो 62 सीटों पर कमल का फूल खिलाने में कामयाब रही। दूसरी ओर, समाजवादी और बसपा के गठबन्धन के कारण जहां बसपा को 10 सीटें बतौर जीत में मिली तो वहीं समाजवादी पार्टी के कुनबे को 5 सीटों पर संतोष करना पड़ा था। इस चुनावी परिणाम में सबसे दयनीय स्थिति कांग्रेस और राहुल गांधी की देखने को मिली। 2019 का लोकसभा चुनाव नेहरू परिवार और कांग्रेस के लिये किसी सदमे से कम नहीं था। बता दें कि बीजेपी की तरफ से स्मृति ईरानी ने नेहरू परिवार की पारम्परिक सीट अमेठी में राहुल गांधी जैसे बड़े चेहरे को हराकर सबको चौंकाया। हालांकि, रायबरेली सीट पर सोनिया गांधी की जीत ने कांग्रेस का खाता खुलवाया। यह वह दौर (2014-190) था जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की प्रचंड लहर चल रही थी। इस लहर में अच्छे-अच्छे सूरमा किनारे लग चुके थे।
साल 2024 के लोकसभा चुनाव के परिणामों ने न सिर्फ यूपी में बीजेपी को ज़मीन पर लाकर पटक दिया बल्कि ख़ुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को अपने संसदीय क्षेत्र वाराणसी से पिछले दो चुनावों के मुकाबले काफी मशक्कत के बाद कम मार्जिन से जीत का स्वाद चखने का मौका मिला। इस चुनावी परिणाम ने सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव के नेतृत्व क्षमता और राजनीतिक योग्यता पर बार-बार उठ रहे सवालिया निशान पर भी पूर्ण विराम लगा दिया। इण्डिया गठबन्धन की रणनीति ने एक ओर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विकास कार्यों, प्रचंड लहर और डबल इंजन सरकार की कलई खोल कर रख दी तो वहीं दूसरी ओर सूबे के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के शासन-प्रशासन की चुस्त-दुरुस्त मुस्तैदी, जीरो टॉलरेंस और बुल्डोजर नीति को भी क़रीब से आईना दिखाकर सारे मिथक तोड़कर रख दिया। सियासत की दुनिया में ऐसी चर्चाएं जोरों पर थीं कि दिल्ली और लखनऊ के सम्बन्धों में खटास बढ़ चुकी है।

-: जब अखिलेश यादव ने चलाई निष्कासन गाड़ी

कुछ महीनों पहले ही सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने अपनी पार्टी के तीन विधायकों को पार्टी विरोधी गतिविधियों में लिप्त होने की वज़ह से पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाकर स्पष्ट रूप से संदेश देने की कोशिश की थी कि जो भी पार्टी लाइन से बाहर जाकर काम करेगा उसका यही अंजाम होगा। इन तीन विधायकों में अयोध्या के गोसाईगंज विधानसभा सीट से विधायक बाहुबली अभय सिंह,
पूर्व कैबिनेट मंत्री, रायबरेली के ऊंचाहार सीट से विधायक मनोज पाण्डेय और अमेठी के गौरीगंज विधानसभा सीट से विधायक राकेश प्रताप सिंह जैसे नाम शामिल थे। हालांकि, पिछले राज्यसभा चुनाव में सपा के क़रीब आठ विधायकों पर क्रास वोटिंग करने का आरोप लगाया गया था। तब इस ख़बर ने मीडिया में काफी तूल पकड़ी। पर, बाकी के बचे विधायकों को कुछ सोच-समझकर सपा ने अपनी पार्टी में बनाये रखने में फायदा समझा।

बहरहाल, 2025 में, विधानसभा के मानसून सत्र में समाजवादी पार्टी की प्रयागराज की विधायक पूजा पाल ने अपने भाषण में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की जमकर तारीफ़ कर दी। उनके इस व्यवहार से पूरा सपाई खेमा हक्का-बक्का रह गया था। पूजा पाल के द्विअर्थी भाषण से एक तरफ बीजेपी लॉबी ख़ुश नज़र आ रही थी तो वहीं समाजवादी पार्टी सन्न रह गयी थी। पूजा पाल ने योगी आदित्यनाथ को धन्यवाद देते हुए कहा कि उन्होंने उनके पति के हत्यारों को सजा दिलाकर उनके साथ न्याय किया है।
उनके इस रवैये के बाद सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने उन्हें पार्टी से निष्कासित कर दिया और उन्होंने पत्रकारों से कहा कि इन्हें अब बीजेपी से चुनाव लड़ना चाहिये, वहीं सपा के वरिष्ठ नेता शिवपाल सिंह यादव ने कहा कि इनका हाल ही उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य जैसा हो जायेगा। अब यह कोई चुनाव नहीं जीत पायेंगी।

-: पूजा पाल के भाषण के पीछे कहीं बीजेपी की चाल तो नहीं

दरअसल, राजनीति में दल-बदल और आरोप-प्रत्यारोप का दौर चलता रहा है और यह आगे भी देखने को मिलता रहेगा लेकिन यहां सबसे महत्त्वपूर्ण चीज़ होती है टाइमिंग। पूजा पाल के विधानसभा सत्र में दिये गये भाषण के बाद से ही तरह-तरह के सवाल खड़े हो गये हैं। पूजा पाल के पति की नृशंस हत्या की जितनी निंदा की जाये, कम ही होगा। लेकिन लोगों में कानाफूसी चल रही है कि जब उन्हें योगी जी की तारीफ़ ही करनी थी तो वे इतने दिनों तक समाजवादी पार्टी में क्यों पड़ी हुई थीं? उन्होंने समाजवादी पार्टी को ज्वाइन ही क्यों किया जबकि उनके पति राजू पाल की हत्या 2005 में ही हो चुकी थी। कई तरह के सवाल खड़े किये जा रहे हैं। उनका मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मिलना कहीं न कहीं इस दावे को बल भी दे रहा है।

-: योगी आदित्यनाथ सपा के पीडीए के ख़िलाफ़ बिछा रहे हैं मोहरे?

समाजवादी पार्टी के साथ गठबन्धन तोड़कर जब से कैबिनेट मंत्री ओमप्रकाश राजभर ने बीजेपी से पुनः दोस्ती की है तब से वह पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और उनकी ‘पीडीए संस्करण’ पर लगातार सवाल खड़े कर रहे हैं। ओपी राजभर आये दिन अखिलेश यादव की नीयत पर सवाल खड़ा कर पिछड़ों, अति पिछड़ों और मुस्लिम समाज के साथ भेद-भाव करने का आरोप लगाते रहते हैं। ओपी राजभर कहते हैं कि सपा केवल यादवों की हितैषी पार्टी है और उसके शासनकाल में उन्हीं का चलता है। उन्होंने हाल ही में एक इंटरव्यू में कहा कि अखिलेश यादव का पीडिए सूत्र केवल सत्ता पाने के लिये एक चाल भर है। राजभर के अलावा पिछड़ों के एक और नेता हैं स्वामी प्रसाद मौर्य। उन्होंने भी सपा का साथ छोड़ अपना अलग रास्ता बना लिया है।
इसी पीडीए का नाम जपने से पिछले लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी को 37 सीटों पर जीत मिली थी।
इस बात को योगी आदित्यनाथ और बीजेपी आलाकमान बख़ूबी जानती है। योगी आदित्यनाथ ने तो पीडीए पाठशाला की नीयत पर भी सवाल खड़े कर दिये थे। बीजेपी आलाकमान और डबल इंजन सरकार पिछड़ों को हर तरह से अपने साथ जोड़ने का प्रयास और प्रयोग करते दिख जाते हैं।

उधर, प्रयागराज के चर्चित चेहरे को तौर पर जाने जाते हैं पूर्व विधायक बाहुबली उदयभान करवरिया। करवरिया बंधुओं पर योगी आदित्यनाथ के आशीर्वाद के कारण समाजवादी पार्टी द्वारा सीएम योगी आदित्यनाथ पर भेदभाव और जातिवाद करने का आरोप लगाया गया। 12 सीटों वाले प्रयागराज में फ़िलहाल 4 सीटों पर समाजवादी पार्टी का परचम लहरा रहा है और सांसद की सीट भी बीजेपी के पास न होकर कांग्रेस के खाते में है। देखा जाये तो प्रयागराज उत्तर प्रदेश की राजनीति का बहुत बड़ा अखाड़ा है जिसके परिधी में बनारस, जौनपुर व भदोही, प्रतापगढ़, सुल्तानपुर, मिर्जापुर, चित्रकूट और बांदा जैसे राजनीतिक क्षेत्र आते हैं। ख़ास बात यह है कि उसी प्रयागराज से सटा एक और महत्त्वपूर्ण जिला है कौशाम्बी, जहां सूबे के उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य का चुनावी क्षेत्र सिराथु भी आता है।
इस नज़रिए से देखें तो पहले करवरिया बंधुओं और अब पूजा पाल पर बीजेपी का आशीर्वाद क्या रंग दिखाता है, देखना दिलचस्प होगा। सियासी पहलवानों के ज़ेहन में कहीं न कहीं 2024 के लोकसभा चुनाव का परिणाम भी ज़रूर होगा।
बहरहाल, सबकी नजरें इस बात पर टिकीं हैं कि सपा से बग़ावती बिगुल बजाने वाला अगला कौन होगा। दूसरी तरफ पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के निष्कासन की पंक्ति में अगला नाम किसका होगा क्योंकि समाजवादी पार्टी के एक प्रवक्ता मीडिया से बातचीत में यह खुलासा कर चुके हैं कि कुछ और बाग़ी नेताओं का नम्बर निष्कासन के लिये जल्द ही आ सकता है।

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