लाइव सत्यकाम न्यूज,लखनऊ : परिवहन आयुक्त, उत्तर प्रदेश को ही राज्य परिवहन प्राधिकरण (एस०टी०ए०) के अध्यक्ष के रूप में नियुक्त किये जाने के निर्णय पर पुर्नविचार किया जाय, क्योकि संगठन का मानना है, कि इस पद पर किसी स्वतंत्र, निष्पक्ष और नीति प्रवृत की नियुक्ति ही उपयुक्त होगी, ताकि सार्वजनिक परिवहन तंत्र में जनता का विश्वास और पारदर्शिता बनी रहे।
संगठन उत्तर प्रदेश परिवहन निगम से है, जिसके कारण परिवहन विभाग एवं परिवहन निगम में अपने-अपने हितो, कर्मचारियों, प्रदेश की जनता के हितकार्यों में सदैव टकराव की स्थिति बनी रहती है, जो निम्नवत् हैः-
1- महोदय उत्तर प्रदेश परिवहन निगम पर वर्षों से परिवहन विभाग द्वारा अतिरिक्त यात्री कर के नाम पर प्रतिवर्ष लगभग 300 करोड़ रूपये अधिक यात्री कर वसूला जा रहा है, वह किस कारण है इसको परिवहन विभाग द्वारा कभी भी जवाब नहीं दिया, किन्तु इसको सही मानते हुये परिवर्तन नहीं होने दिया। परिवहन निगम लगातार एस०टी०ए० में बराबर शिकायत की जाती रही है।
2-01 जून 1972 में उत्तर प्रदेश परिवहन निगम का गठन हुआ, तब प्रदेश के राजमार्गो पर परिवहन निगम अपनी बसों का संचालन करता रहा परन्तु अब 07 प्रतिशत राष्ट्रीयकृत मार्ग रह गये है। परिवहन निगम द्वारा राष्ट्रीयकृत मार्गो का प्रतिशत बढ़े की मांग भी एस०टी०ए० के समक्ष रखते हुये राष्ट्रीयकृत मार्गों का प्रतिशत बढ़ेगा कि अपील की जाती रही है। पर भी परिवहन विभाग द्वारा इस गम्भीर समस्या में भी परिवहन निगम का साथ नहीं दिया।
3-राष्ट्रीयकृत मार्गो पर बिना किसी रोक-टोक के अवैध वाहनें प्रदेश के राष्ट्रीयकृत मार्गो पर बिना स्टेज कैरिज परमिट के फर्राटा भर रही है। जिससे परिवहन निगम की करोड़ो रूपये की आय की लूट हो रही है, साथ ही अवैध डग्गामार संचालन करने वाले जो कि बस स्टेशनों के सामने से भी सवारिया उठाते हैं, के द्वारा निगम के कर्मचारियों के साथ मार-पीट करते हैं, महोदय आपके ही आदेश हैं, कि निगम के बस स्टेशनों से एक किलोमीटर की परिधि में कोई प्राइवेट बस स्टैण्ड नहीं होगा, यदि ऐसा है, तो उस पर विधिक कानूनी कार्यवाही दंड, अवैध वाहनों को सीज किये जाने की कार्यवाही आपके आदेश में स्पष्ट है, किन्तु इस प्रकार के डग्गामार संचालन को परिवहन विभाग एवं पुलिस विभाग नहीं मानता है, ऐसी दशा में परिवहन निगम आपके आदेश एवं परिवहन निगम को न्याय मिले के लिए एस०टी०ए० में अपनी शिकायत करना एक माध्यम है।
पारवहन आयुक्त राज्य पारवहन विभाग के कार्यपालक प्रमुख राप एप परिवहन प्राधिकरण द्वारा लिये गये निर्णयों को लागू करना होता है। यदि वही अधिकारी एस०टी०ए० के अध्यक्ष नियुक्त होते हैं तो वह न्यायिक और कार्यकारिक भूमिकाओं के बीच स्पष्ट हितो का टकराव उत्पन्न करेगा। और प्रशासनिक कार्यों और नीति निर्धारण / न्यायिक कारणों को पृथक रखना सुशासन का मूल सिद्धांत है।
5-पारदर्शिता और निष्पक्षता पर प्रभाव एस०टी०ए० मुख्य कार्य हैं, स्टेज कैरिज परमिट लेना, मार्ग निर्धारण करना, निजी बनाम सार्वजनिक परिवहन का सन्तुलन एवं मार्गो का राष्ट्रीयकरण या निरस्तीकरण होता है। महोदय इन कार्यों के लिए निष्पक्ष पारदर्शी और तटस्थ दृष्टिकोण आवश्यक है, यदि कार्यपालिका प्रमुख ही इस अध्यक्ष होगा तो निजी संचालकों को अनुचित लाभ, पक्षपात पूर्ण निर्णय तथा सार्वजनिक हित की उपेक्षा की सम्भावना बढ़ सकती है।
6-मोटरयान अधिनियम 1988 की धारा 68 (2) का उल्लंघन है, मोटरयान अधिनियम की धारा 68 (2) के अनुसार राज्य सरकार राज्य प्राधिकरण का गठन कर सकती है, जिसमें ऐसे सदस्य नियुक्त किये जायें जो स्वतंत्र और उपयुक्त हो। महोदय यह एक स्वतंत्र संस्था के रूप में होती है न कि किसी विभागीय प्रमुख द्वारा संचालित संस्था के रूप में।
7-महोदय कई निर्णय माननीय उच्चतम न्यायालय, मा० उच्च न्यायालय के निर्णयों में यह स्पष्ट किया है, कि नियामक संस्थाओं की स्वतंत्रता और कार्यपालिका से पृथकता आवश्यक है, परिवहन सम्बन्धी निर्णयों में भी विभिन्न न्यायालयों ने यह निर्देश दिया है, कि परमिट और मार्ग निर्धारण जैसे निर्णय स्वतंत्र वैधानिक निकाय द्वारा लिये जायें, न कि विभागीय अधिकारियों द्वारा।
8-संगठन का भी मत है, कि जनहित एवं नीति की निष्पक्षता एस०टी०ए० के अध्यक्ष पद पर ऐसे व्यक्ति की होनी चाहिए जो कार्यपालिका से पृथक हो, वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी या परिवहन नीति विशेषज्ञ हो ताकि वह स्वतंत्र, निष्पक्ष और जनता के हित में निर्णय ले सके।
9-महोदय यदि शक्ति का केन्द्रीयकरण होगा तो मनमाने की आशंका बनी रहेगी। श्रीमान परिवहन आयुक्त को एस०टी०ए० का अध्यक्ष बनाने से शक्ति का केन्द्रीयकरण होगा जिससे न तो स्वतंत्र विचार विमर्श हो पाना कठिन होगा और न ही आवश्यक पारदर्शिता बनी रहेगी। यह लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं और उत्तरदायित्व के सिद्धांतो के विरूद्ध है।
निष्कर्ष
उपरोक्त तथ्यों के आलोक में विनम्र निवेदन है, कि श्रीमान परिवहन आयुक्त को एस०टी०ए० का अध्यक्ष बनाये जाने से निश्चित तौर पर निष्पक्षता दम तोड़ देगी हितो की रक्षा होगी इसका सन्देह है, जनता के बीच शासन और सरकार की नीतियों से विश्वास हटेगा। अतः महोदय संगठन का मत है, कि परिवहन विभाग और एस०टी०ए० का स्वतंत्र इकाई होना अतिआवश्यक है। परिवहन आयुक्त को एस०टी०ए० का अध्यक्ष बनाये जाने के निर्णय पर पुनर्विचार किये जाने की परम आवश्यकता है।