लखनऊ: उत्तर प्रदेश के ऊर्जा मंत्री अरविंद कुमार शर्मा द्वारा आज विधानसभा में बिजली के निजीकरण के पक्ष में दिए गए वक्तव्य से बिजली कर्मियों में भारी आक्रोश व्याप्त हो गया है। संघर्ष समिति ने कहा है कि विकसित भारत के लिए बिजली का निजीकरण नहीं अपितु सार्वजनिक क्षेत्र में बिजली उद्योग को रखा जाना प्राथमिक आवश्यकता है, क्योंकि निजी क्षेत्र के लिए बिजली एक व्यापार है और सार्वजनिक क्षेत्र के लिए बिजली एक सेवा है। आगरा में टोरेंट पॉवर कंपनी का प्रयोग इसका प्रत्यक्ष प्रमाण है।
संघर्ष समिति के पदाधिकारियों ने कहा कि ऊर्जा मंत्री ने विधानसभा में स्वयं स्वीकार किया है कि निजी घरानों के साथ बहुत महंगी दरों पर बिजली खरीद के करार उप्र में बिजली की दुर्दशा का बहुत बड़ा कारण है। उन्होंने कहा कि बहुत महंगी दरों पर निजी घरानों से बिजली खरीदने के कारण पॉवर कारपोरेशन को लगातार घाटा उठाना पड़ रहा है। इसका उत्तरदायित्व सरकार और प्रबंधन का है, कर्मचारियों का नहीं।
उन्होंने कहा कि निजीकरण के बाद भी 25-25 वर्ष के लिए किए गये लॉन्ग टर्म बिजली खरीद करारों में कोई बदलाव नहीं किया जा सकता। स्वाभाविक है कि निजी कम्पनी महंगे बिजली खरीद करारों की भरपाई के लिए बिजली की दरें बढ़ाएगा। निजी क्षेत्र महंगी दरों पर बिजली खरीद कर सस्ते दाम पर उपभोक्ताओं को कभी नहीं देगा। आगरा इसका उदाहरण है।
संघर्ष समिति ने कहा कि आगरा में टोरेंट कंपनी के विषय में ऊर्जा मंत्री का दिया गया बयान अर्ध सत्य है। आगरा में टोरेंट पॉवर कंपनी लाइसेंसी नहीं है। यह अर्बन डिस्ट्रीब्यूशन फ्रेंचाइजी है। अतः पॉवर कारपोरेशन फ्रेंचाइजी को बिजली देता है और फ्रेंचाइजी उसी दर पर बिजली बेचती है जो लाइसेंसी(पॉवर कारपोरेशन)की विक्रय दर है। ऊर्जा मंत्री को यह भी बताना चाहिए कि पॉवर कारपोरेशन 05.55 रुपए प्रति यूनिट की दर से बिजली खरीद कर टोरेंट पावर कंपनी को 04.36 रुपए प्रति यूनिट पर बेचती है। इससे अकेले वर्ष 2023-24 में ही पॉवर कारपोरेशन को 275 करोड रुपए का घाटा हुआ है। दूसरी ओर 04.36 रुपए प्रति यूनिट पर पावर कारपोरेशन से बिजली लेकर टोरेंट पावर कंपनी ने आगरा में औसत 07.98 रुपए प्रति यूनिट पर बिजली बेंच कर वर्ष 2023-24 में 800 करोड रुपए का मुनाफा कमाया है। यदि निजीकरण न हुआ होता तो यह मुनाफा पावर कारपोरेशन को मिलता। इस तरह निजीकरण के इस प्रयोग से पॉवर कारपोरेशन को कुल 1000 करोड़ रुपए का घाटा मात्र एक साल हुआ है। इस प्रकार विगत 15 वर्षों में आगरा के निजीकरण से पॉवर कॉरपोरेशन को हजारों करोड़ रुपए का घाटा हो चुका है।
संघर्ष समिति ने कहा कि ऊर्जा मंत्री के बयान से और स्पष्ट हो गया है कि निजीकरण से बिजली कर्मियों की बड़े पैमाने पर छटनी होने जा रही है । ऊर्जा मंत्री ने विधानसभा में कहा है कि आगरा की बिजली व्यवस्था टोरेंट पावर कंपनी को देने के बाद वहां काम कर रहे कर्मचारियों को अन्य ऊर्जा निगमों में भेज दिया गया था। उल्लेखनीय है कि आगरा में बहुत कम कर्मचारी थे जिनका अन्य ऊर्जा निगमों में समायोजन किया जा सका था। पूर्वांचल विद्युत वितरण निगम और दक्षिणांचल विद्युत वितरण निगम में लगभग 26500 नियमित कर्मचारी और लगभग 50 हजार संविदा कर्मी कार्यरत हैं। इतनी बड़ी संख्या में बिजली कर्मचारियों और संविदा कर्मियों को अन्य ऊर्जा निगमों में समायोजित करना सम्भव नहीं है। ऐसी स्थिति में बहुत बड़े पैमाने पर बिजली कर्मियों की छटनी होगी। उन्होंने कहा कि निजीकरण किए जाने के पहले ही संविदा कर्मियों को निकाला जा रहा है, फिर निजीकरण के बाद तो उनकी नौकरी जाना निश्चित ही है। इस मामले में ऊर्जा मंत्री का वक्तव्य कि कर्मचारियों की कोई छटनी नहीं होगी, पूरी तरह भ्रामक है।
सदन मे ऊर्जा मंत्री के निजीकरण के वक्तव्य से बिजली कर्मियों में भारी आक्रोश
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