लाइव सत्यकाम न्यूज,लखनऊ :विधुत नियामक आयोग ने ऊर्जा क्षेत्र की सबसे बड़ी संवैधानिक कमेटी राज्य सलाहकार समिति की 25 जुलाई को बैठक बुलाई जिसमें उत्तर प्रदेश सरकार के पांच प्रमुख सचिव सहित उपभोक्ता परिषद अध्यक्ष भी भाग लेंगे जिसमें बिजली दर बढ़ोतरी व निजीकरण पर भी उपभोक्ता परिषद रखेंगी अपनी बात।
प्रदेश की बिजली कंपनियों द्वारा दाखिल बिजली दरों में बढ़ोतरी प्रस्ताव सहित रेगुलेटरी ऐसेट जो उपभोक्ताओं का बिजली कंपनियों पर सरप्लस निकल रहा है के मामले में विधुत अधिनियम 2003 की धारा 87 के तहत गठित ऊर्जा क्षेत्र की सबसे बड़ी संवैधानिक कमेटी राज्य सलाहकार समिति की बैठक 25 जुलाई को विधुत नियामक आयोग सभागार में बुलाई गई है जो नियामक आयोग अध्यक्ष की अध्यक्षता में सदस्य नियामक आयु की उपस्थिति में शुरू होगी जिसमें बिजली दर के मामले पर अंतिम चर्चा की जाएगी जिसमें उत्तर प्रदेश सरकार के अपर मुख्य सचिव ऊर्जा सहित प्रमुख सचिव खाद्य अपर मुख्य सचिव सचिव कृषि प्रमुख सचिव सिंचाई प्रमुख सचिव अर्बन डेवलपमेंट सहित पावर कारपोरेशन के प्रबंध निदेशक व अन्य उच्च अधिकारी भाग लेंगे। इस बैठक में प्रदेश के विधुत उपभोक्ताओं की तरफ से उत्तर प्रदेश राज विधुत उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष भी सदस्य के रूप में बैठक में प्रतिभाग करेंगे।
उत्तर प्रदेश राज्य विधुत उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष व राज्य सलाहकार समिति के सदस्य अवधेश कुमार वर्मा ने कहा प्रदेश के विधुत उपभोक्ताओं की तरफ से बिजली दरों में बढ़ोतरी का हर स्तर पर विरोध किया जाएगा और सलाहकार समिति को यह अवगत कराया जाएगा कि प्रदेश के उपभोक्ताओं का बिजली कंपनियों पर 33122 करोड़ सर प्लस निकल रहा है इसलिए बिजली दरों में एक साथ 45% अथवा अगले 5 वर्षों तक 9% कमी करके उपभोक्ताओं का हिसाब बराबर किया जाए।
उपभोक्ता परिषद अध्यक्ष ने कहा प्रदेश की बिजली कंपनियों की तरफ से वर्ष 2025-26 का बिजली दर प्रस्ताव जिस पर सभी बिजली कंपनियों में सुनवाई हो चुकी है और 21 जुलाई को मध्यांचल की सुनवाई होना बाकी है लेकिन सबसे बड़ा संवैधानिक सवाल यह है कि एक तरफ पूर्वांचल दक्षिणांचल की बिजली दर की सुनवाई वर्ष 2025-26 के लिए पूरी हो चुकी है इसी बीच दोनों ही बिजली कंपनियों के 42 जनपदों के निजीकरण का फैसला भी लिया गया है जो पूरी तरह आसंवैधानिक है उपभोक्ता परिषद सलाहकार समिति की बैठक में इस मुद्दे को उठाएगा की एक तरफ बिजली कंपनियों ने अप्रैल 2026 तक व्यवसाय करने के लिए अपने वार्षिक राजस्व आवश्यकता का लेखा-जोखा दाखिल किया है और इसी बीच निजीकरण की भी बात की जा रही है जो दोनों विरोधाभासी है इसलिए निजीकरण का प्रस्ताव खारिज किया जाना उचित होगा।


