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कांग्रेस की ‘बिहार यात्रा’ की घोषणा के पीछे कहीं प्रशांत किशोर का डर तो नहीं!

लाइव सत्यकाम न्यूज,लखनऊ /बिहार (By Roshan Mishra): मशहूर कवि दुष्यंत कुमार ने कभी कहा था, ” कौन कहता है आसमां में सुराख नहीं हो सकता, एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारो!” लगता है कि आजकल राहुल गांधी दुष्यंत कुमार की इस अमर अल्फ़ाज़ के पथ पर चलते हुए दिखने लगे हैं। इण्डिया गठबन्धन के सबसे बड़े चेहरे और लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष सांसद राहुल गांधी ने एक बार फिर से यात्रा शुरू करने का संकेत दे दिया है। इस बार उनकी यह यात्रा भारत जोड़ो यात्रा की कामयाबी को देखते हुए बिहार से शुरू होने जा रही है।
फ़िलहाल राहुल गांधी की इस घोषणा से एनडीए की मुश्किलें बढ़नी तय है क्योंकि उन्होंने कहा है कि वे 17 तारीख़ को बिहार में ‘वोटर अधिकार यात्रा’ निकालने जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि वन वोट- वन मैन का आइडिया संविधान को बचाने के लिये है जिसके खातिर हम और बिहार के सारे युवा एक साथ निकलेंगे ताकि वोट चोरी रूक सके। उन्होंने बिहार के युवाओं से आग्रह किया कि वे उनके मुहिम में जुड़कर उनका साथ दें। बता दें कि 243 विधानसभा सीटों वाले बिहार में कांग्रेस के पास वर्तमान में केवल 19 विधायक हैं, वो भी गठबन्धन की रणनीति के दम पर। पिछले साढ़े तीन दशकों से कांग्रेस बिहार की सत्ता से बाहर है। फ़िलहाल कांग्रेस का सत्ता तक क़ाबिज़ होने के आसार दूर-दूर तक नज़र नहीं आते। इसके कई कारण हैं। अगर कुछ चुनिंदा कारणों की बात करें तो कांग्रेस ने सत्ता में बने रहने के लिये गठबन्धन को अपना एकमात्र विकल्प हथियार बना लिया है। दूसरी बात कि बीजेपी के पास जहां हिन्दुत्व की राजनीति करने का हथियार है, वहीं जदयू और राजद के पास समाजवाद के नाम पिछड़ों और दलितों का वोट बैंक है। सवर्णों का एक बड़ा हिस्सा बीजेपी के साथ मजबूती से जुड़ा हुआ है और बात मुस्लिम समाज की करें तो उसका रूझान राजद-जदयू में मुख्य तौर पर देखने को मिलता रहता है। दरअसल, जिस दल का जिस सीट पर बीजेपी को हराने
की उम्मीद दिखती है, मुस्लिम समाज का वोट ज्यादातर उसी दल या उम्मीदवार को मिलता रहा है। नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी भले ही जोर-शोर से 90% प्रतिशत आबादी के हक़ में आवाज़ उठाते रहते हों लेकिन ज़मीन पर आज भी कांग्रेस के पास अपना कोई कोर वोट बैंक नहीं दिख रहा क्योंकि हिन्दी बेल्ट में ‘जाति’ आज भी एक कड़वी सच्चाई है। विगत दिनों संसद के मानसून सत्र में राहुल गांधी और इण्डिया गठबन्धन के दोस्तो ने जिस तरह से पूरे दमखम से बिहार में एस आई आर यानी स्पेशल इंटेंसिव रिविजन ( विशेष गहन पुनरीक्षण ) और मतदाता सूची में कथित गड़बड़ी का आरोप लगाया, इससे कहीं न कहीं बीजेपी के लिये असहजता दिखी
हालांकि, बीजेपी ने राहुल गांधी के इन आरोपों को सिरे से ख़ारिज करते हुए निराधार बताया था। अब सवाल यह उठता है कि जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दिल्ली में रहते हैं, भारतीय निर्वाचन आयोग का मुख्यालय दिल्ली में है और संसद भवन भी दिल्ली में ही है; ऐसे में राहुल गांधी अपनी यह यात्रा दिल्ली में न निकालकर बिहार में क्यों करना चाहते हैं? क्या इसके लिये वे बिहार के अलावा कोई और राज्य नहीं चुन सकते थे? सवाल यह भी खड़ा होना तय है कि पिछले लोकसभा चुनाव के ठीक एक-दो साल पहले उन्होंने ‘भारत जोड़ो यात्रा’ निकाली थी जिसकी सराहना देश भर में हुई। उसके बाद से देखा गया कि लोकसभा चुनाव 2024 के पहले उन्होंने ‘भारत जोड़ो न्याय यात्रा’ निकाली। इस यात्रा की कामयाबी का अंदाज़ा इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि बीजेपी को लोक सभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में 33 सीटें ही मिल सकीं और इण्डिया गठबन्धन की दोनों मुख्य पार्टियों समाजवादी पार्टी को जहां 37 सीटें मिलीं वहीं कांग्रेस के खाते में भी अरसे बाद आधा दर्जन साथी लोकसभा के लिये चुने गये। राहुल गांधी की महत्त्वाकांक्षी भारत जोड़ो यात्रा का ही असर था कि उन्होंने अपनी पूरी यात्रा में समाज के सबसे बड़े और मतों की दृष्टिकोण से अहम माने जाने वाले किसानों, महिलाओं, मज़दूरों, छात्रों और बेरोजगारों के मुद्दों को आखिरी तक पकड़े रखा, जिसकी वज़ह से बीजेपी को अपने तीसरे कार्यकाल में पूर्ण बहुमत से काफी दूर छूटना पड़ा। नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने देश या समाज के पांच महत्त्वपूर्ण तबकों के लिये ‘न्याय’ की बात छेड़कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ‘सबका साथ, सबका विकास के दांवों’ को कड़ी चुनौती दी।
हालांकि, यह भी सच है कि बिहार में आने वाले चंद महीनों में विधानसभा चुनाव होने के कयास लगाये जा रहे हैं। ऐसे में राहुल गांधी के लिये बिहार में यात्रा करने का विचार करना कहीं न कहीं बिहार विधानसभा चुनाव के नज़र से देखा जा रहा है। वहीं,
कांग्रेस के मीडिया और पब्लिक डिपार्टमेंट के चेयरमैन और तेजतर्रार प्रवक्ता पवन खेड़ा ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर कहा कि आज पक्ष और विपक्ष दोनों के सवालों के घेरे में चुनाव आयोग खड़ा है ऐसे में ज्ञानेश गुप्ता कहां हैं? उन्होंने अनुराग ठाकुर के नाम पर तंज़ कसते हुए बीजेपी और चुनाव आयोग के बीच सांठ-गांठ होने का न सिर्फ बड़ा आरोप लगाया बल्कि यहां तक कह दिया कि जनभावना की आवाज़ है – वोट चोर, गद्दी छोड़!
पवन खेड़ा का कहना है कि जब बीजेपी के पास इलेक्ट्रॉनिक डेटा आ गया है तो शायद वाराणसी की वोटर लिस्ट की पेन ड्राइव
भी आ गयी होगी जिसका हमें इंतज़ार है। राहुल गांधी के सुर में सुर मिलाते हुए पवन खेड़ा भी बीजेपी पर वोट चोरी और ‘ चुनाव में हेराफेरी’ का कथित आरोप बार-बार लगा रहे हैं।

-: क्या कांग्रेस की बिहार यात्रा के पीछे कहीं प्रशांत किशोर का भय तो नहीं

आज की तारीख में प्रशांत किशोर किसी पहचान के मोहताज नहीं हैं। बिहार का शायद ही कोई ऐसा गांव होगा जहां के निवासी प्रशांत किशोर के नाम या फिर उनके चेहरे से अनजान होंगे। प्रशांत किशोर ने अपनी यह पहचान वातानुकूलित कमरे में बैठकर नहीं बनायी है बल्कि इसके लिये उन्होंने सारे वैभव और ऐश्वर्य को छोड़कर तक़रीबन विगत तीन वर्षों से बिहार में स्थायी डेरा डाल रखा है। यह बताना दिलचस्प होगा कि कांग्रेस के पहचान की नींव 1885 में पड़ चुकी थी। तब से लेकर अब तक कांग्रेस ने न जाने कितने ही दौर देखे। देश-प्रदेश में दशकों तक शासन किया। उसके पास देश के पहले प्रधानमंत्री भारत रत्न पण्डित जवाहरलाल नेहरू और पूर्व प्रधानमंत्री और आयरन लेडी के नाम से विख्यात इन्दिरा गांधी के रूप बहुत बड़ी उपलब्धि है। इसके अलावा भी कांग्रेस के पास धुरंधर चेहरों और टीम की कमी नहीं है। वहीं, बीजेपी की जड़ में क़रीब सौ साल पुरानी आर एस एस और उसके अनुषांगिक संगठनों का नाम जुड़ा हुआ है। उसके पास प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अलावा भी बड़े-बड़े चेहरे रहे हैं। दूसरी ओर, बिहार के क्षेत्रीय पार्टियों की बात करें मसलन- राजद, जदयू, लोजपा आदि के पास न चेहरों का अभाव है, न तजुर्बे की ज़रूरत है और न ही टीम बल या अन्य राजनीतिक साधनों की कमी है। वहीं, बिहार जैसे पिछड़े राज्य जहां ‘जाति फैक्टर’ भी एक सच्चाई है ऐसे में 2 अक्टूबर 2022 को गांधी जी के पथ का अनुसरण करने का दावा कर अपनी यात्रा चम्पारण से शुरू करने वाले प्रशांत किशोर ने बिहार में एक अलग क्रान्ति जगा दी है।

प्रशांत किशोर उच्च शिक्षित होने के साथ-साथ राजनीतिक दांव-पेंच को पूरी तरह से समझने में माहिर माने जाते हैं। उन्होंने हर बड़ी पार्टियों के साथ बतौर चुनावी रणनीतिकार काम किया है और उन्हें चुनावी प्रबंधन का बहुत अधिक तजुर्बा है। उन्होंने मीडिया प्लेटफॉर्म पर इंटरव्यू के दौरान इस बात को स्वीकार किया है कि पीएम नरेंद्र मोदी के 2014 के चुनाव में उन्होंने उनका सहयोग किया था और उनके बताये हुए रणनीति का बीजेपी को फायदा भी मिला। सूत्रों की मानें तो इसके अलावा उन्होंने बिहार में जदयू नेता और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और राजद के बीच वर्षों की खटास मिटाकर ‘महागठबन्धन’ की नींव रखने में भी अपनी प्रतिभा का बख़ूबी इस्तेमाल किया था जिसका असर बिहार के चुनाव में देखने को भी मिला।

-: अगले जेपी और लोहिया बनते जा रहे हैं पीके

बहरहाल, प्रशांत किशोर ने महज़ तीन सालों में बिहार के गांव-गांव में अपनी पहुंच बना ली है और जिसकी परिणति में आज उनकी पार्टी जन सुराज और उनके पीले गमछे का रंग ज़मीन से लेकर सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म तक पर बख़ूबी देखा जा सकता है। उन्हें देखने और सुनने के लिये लोगों की भीड़ उमड़ रही है। वे पढ़े-लिखे नौजवानों और लोगों को अपनी पार्टी जन सुराज में जोड़ रहे हैं। प्रशांत किशोर से प्रभावित होकर जन सुराज के साथ बड़े-बड़े ओहदेदार जुड़ रहे हैं। उनकी यात्राओं का असर ही है कि प्रशांत किशोर की चर्चाएं हर जगह देखने और सुनने को मिल रही हैं।
प्रशांत किशोर ने यह आह्वान किया है कि यदि उनकी पार्टी का कैंडिडेट पर दागी या असामाजिक कामों में लिप्त रहने का आरोप है तो बिहार की जनता उनके कैंडिडेट को वोट न देकर उसे वोट करे जिसे वो उचित समझती है। अभी तक किसी भी नेता ने इस तरह का आह्वान नहीं किया था; ऐसे में कांग्रेस सांसद राहुल गांधी सहित इण्डिया गठबन्धन और एनडीए घटक हर किसी के सामने यह एक चुनौती बन चुकी है क्योंकि पीके ‘बाहुबल और दबंगई’ का खुलकर विरोध कर रहे हैं। पीके के पास खुद को छुपाने के लिये कुछ नहीं है, इस बात से सभी पार्टियां वाक़िफ हैं और यही वज़ह है कि कोई भी नेता खुलकर उनके बारे में अनाप-शनाप बोलना नहीं चाहता। बिहार की राजनीति में प्रशांत किशोर के भाषणों और उस भाषणों में शामिल दशकों के इल्ज़ामों ने जन सुराज को मुख्य धारा की राजनीतिक दलों की श्रेणी में खड़ा कर दिया है। बिहार में, राहुल गांधी की वोटर अधिकार यात्रा के सामने एनडीए से अधिक टक्कर प्रशांत किशोर से मिलेगा। इसे हर कोई समझ रहा है। बिहार में कांग्रेस, राजद, बीजेपी और जदयू सहित लगभग सभी दलों को अच्छी तरह से पता है कि बिहार में प्रशांत किशोर आम जनता के बीच में जाकर बिहार के युवाओं के मुद्दों जैसे कि पलायन, बेरोज़गारी, शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार सहित अन्य दूसरे आवश्यक मुद्दों पर लगातार आवाज़ उठाते रहते हैं। उनका मुख्य नारा है – जय बिहार। पीके के जय बिहार का नारा बिहार में जाति-धर्म, भेद-भाव, ऊंच-नीच जैसे शब्दों को फ़िलहाल पीछे छोड़ता हुआ दिख रहा है। प्रशांत किशोर आये दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर बिहार की जनता के साथ भेद-भाव करने का आरोप लगाते रहते हैं, वहीं उनके रडार पर तेजस्वी यादव और नीतीश कुमार भी बने रहते हैं। ऐसे में कांग्रेस और राहुल गांधी जन सुराज और प्रशांत किशोर का काट क्या महज़ बीजेपी और चुनाव आयोग को कटघरे में खड़ा करके खोज सकते हैं? क्या बिहार में प्रशांत किशोर सांसद राहुल गांधी की इस ,’वोटर अधिकार यात्रा’ को विधानसभा चुनाव के ठीक पहले शुरू करने पर सवाल नहीं खड़े करेंगे? बहरहाल, ऐसा मालूम होता है कि बिहार में इस राजनीतिक लड़ाई में अभी कई सारे मोड़ सामने आयेंगे और जहां हर मोड़ पर अलग-अलग मोहरे देखने को मिल सकते हैं।

प्रशांत किशोर पर विपक्षी पार्टियों द्वारा आरोप लगाया जाता है कि वे बीजेपी के एजेंट हैं। लेकिन जिस हिसाब से प्रशांत किशोर ने पिछले क़रीब तीन सालों में तन-मन-धन सब ख़र्च कर बिहार में मेहनत की है, इतिहास में ऐसा कहीं साक्ष्य नहीं मिलता कि बीजेपी या अन्य दलों के किसी जन-प्रतिनिधि ने इतनी मेहनत की है। कहीं न कहीं एनडीए और इण्डिया गठबन्धन के सभी नेताओं को यह बात अच्छी तरह से पता है। लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने अपने आरोपों से भले ही दिल्ली की सड़कों और संसद में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी सरकार को चौतरफा घेरकर दबाव में ला दिया हो, लेकिन यह भी एक सच्चाई है कि बिहार में राहुल गांधी की दाल शायद ही उतनी आसानी से गले क्योंकि बिहार की धरती पर उनका सामना प्रशांत किशोर से होगा, जो कि फ़िलहाल एनडीए नेताओं के ऊपर आरोपों का बम फोड़ने में व्यस्त हैं। वे आये दिन अपने आरोपों की किस्त ला रहे हैं। ऐसे में देखना दिलचस्प होगा कि सांसद राहुल गांधी का ‘एटम बम’ भारी पड़ता है या फिर प्रशांत किशोर का ‘आरोप बम की किस्त’। जो भी हो, राहुल गांधी की वोटर अधिकार यात्रा क्या उनकी पिछली दोनों यात्राओं की तरह जनता के दिलो-दिमाग पर अपने लिये कोई छाप छोड़ पायेगी अथवा उनकी इस यात्रा पर प्रशांत किशोर कोई नई किस्त जारी करेंगे। 17 अगस्त के बाद बिहार की राजनीतिक ज़मीन पर क्या समीकरण बनते हैं, देखना रोचक होगा।

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