लाइव सत्यकाम न्यूज, लखनऊ : विद्युत कर्मचारी संयुक्त संघर्ष समिति, उत्तर प्रदेश के केंद्रीय पदाधिकारियों ने बताया कि यदि उप्र सरकार निजीकरण की प्रक्रिया को रोकती नहीं है और निजीकरण के लिए लाए गए ड्राफ्ट बिजली (संशोधन) विधेयक 2025 को केंद्र सरकार तत्काल वापस नहीं लेती है, तो देश के सभी प्रांतों के बिजली कर्मचारी और इंजीनियर आगामी 30 जनवरी को राजधानी दिल्ली के जंतर मंतर पर विशाल रैली आयोजित करेंगे।
इसके साथ ही देशभर के बिजली कर्मी निजीकरण के विरोध में संघर्षरत उप्र के बिजली कर्मियों का पूरी तरह साथ देंगे और इस हेतु देशव्यापी आन्दोलन किया जाएगा।
यह जानकारी देते हुए ऑल इंडिया पावर इंजीनियर्स फेडरेशन (एआईपीईएफ) के चेयरमैन शैलेंद्र दुबे ने बताया कि बिजली कर्मियों और अभियंताओं की राष्ट्रीय समन्वय समिति (एन सी सी ओ ई ई ई) ने किसान और सामान्य उपभोक्ता संगठनों के साथ संयुक्त मोर्चा बनाकर बिजली के निजीकरण और बिजली (संशोधन) विधेयक 2025 के खिलाफ देशव्यापी आंदोलन शुरू करने का निर्णय लिया है। इस हेतु संयुक्त मोर्चे की पहली बैठक आगामी 14 दिसंबर को दिल्ली में होगी।
उन्होंने बताया कि 30 जनवरी को दिल्ली में होने वाली विशाल रैली और देशव्यापी आंदोलन के अभियान के तहत 15 नवंबर से 15 जनवरी तक देश के सभी प्रांतों में बिजली कर्मचारियों, किसानों और उपभोक्ताओं के सम्मेलन आयोजित किए जाएंगे। इसी संदर्भ में 15 नवम्बर को गुवाहाटी में आयोजित सभा को आल इंडिया पावर इंजीनियर्स फेडरेशन के चेयरमैन शैलेन्द्र दुबे ने संबोधित किया।
उन्होंने बताया कि एनसीसीओईईई ने मांग की है कि केंद्र सरकार तत्काल किसान-विरोधी, उपभोक्ता-विरोधी और कर्मचारी-विरोधी बिजली (संशोधन) विधेयक 2025 को वापस ले। निर्णय लिया गया कि यदि भारत सरकार उनकी आवाज नहीं सुनती है तो देश भर के 27 लाख बिजली कर्मचारी और इंजीनियर बिजली (संशोधन) विधेयक 2025 और बिजली क्षेत्र के निजीकरण के खिलाफ देशव्यापी आंदोलन शुरू करने के लिए मजबूर होंगे।
शैलेंद्र दुबे ने कहा कि बिजली (संशोधन) विधेयक 2025 के माध्यम से केंद्र सरकार देश के पूरे ऊर्जा क्षेत्र को निजीकरण करना चाहती है। निजीकरण के बाद बिजली दरें इतनी ऊंची हो जाएंगी कि वे किसानों और सामान्य उपभोक्ताओं की पहुंच से बाहर हो जाएंगी।
उन्होंने कहा कि संशोधन विधेयक की धारा 14, 42 और 43 के माध्यम से निजी कंपनियों को सरकारी बिजली वितरण कंपनियों के नेटवर्क का उपयोग करके बिजली आपूर्ति करने का अधिकार दिया जा रहा है, तथा बदले में वे सरकारी डिस्कॉम्स को केवल नाममात्र का व्हीलिंग चार्ज देंगी।
उन्होंने बताया कि नेटवर्क के रखरखाव और मजबूती की पूरी जिम्मेदारी सरकारी वितरण कंपनियों पर होगी। इसका वित्तीय बोझ सरकारी बिजली वितरण निगमों पर पड़ेगा, जबकि निजी कंपनियों को इस नेटवर्क के माध्यम से पैसा कमाने की स्वतंत्रता दी जाएगी।
उन्होंने कहा कि इस संशोधन विधेयक के तहत निजी कंपनियों पर सार्वभौमिक बिजली आपूर्ति की बाध्यता नहीं होगी। इसका प्रतिकूल परिणाम यह होगा कि निजी कंपनियां सरकारी कंपनी के नेटवर्क का उपयोग करके लाभकारी औद्योगिक और व्यावसायिक उपभोक्ताओं को बिजली आपूर्ति करेंगी, जबकि किसानों और गरीब घरेलू उपभोक्ताओं को बिजली आपूर्ति की जिम्मेदारी सरकारी बिजली वितरण निगमों पर रहेगी। फलस्वरूप सरकारी बिजली वितरण कंपनियां दिवालिया हो जाएंगी और उनके पास बिजली खरीदने या अपने कर्मचारियों को वेतन देने के लिए भी पैसा नहीं रहेगा।
उन्होंने कहा कि संशोधन विधेयक में धारा 61(जी) में संशोधन प्रस्तावित है जिससे अगले पांच वर्षों में क्रॉस-सब्सिडी समाप्त कर दी जाएगी। साथ ही, विधेयक में प्रावधान है कि बिजली टैरिफ लागत-प्रतिबिंबी होना चाहिए, अर्थात किसी भी उपभोक्ता को लागत से कम कीमत पर बिजली आपूर्ति नहीं की जानी चाहिए। इसका मतलब है कि किसानों को 6.5 हॉर्सपावर पंप के लिए यदि वह प्रतिदिन छह घंटे चलता है तो कम से कम 12,000 रुपये प्रति माह बिजली बिल देना होगा। इसी तरह गरीबी रेखा से नीचे के उपभोक्ताओं के लिए बिजली दरें कम से कम 10-12 रुपये प्रति यूनिट हो जाएंगी। आगे, विधेयक में वर्चुअल पावर मार्केट और मार्केट आधारित ट्रेडिंग सिस्टम को बढ़ावा देने का प्रस्ताव है। इससे दीर्घकालिक समझौते अस्थिर हो जाएंगे और बिजली की लागत अधिक अस्थिर हो जाएगी।
उन्होंने कहा कि बिजली संविधान की सातवीं अनुसूची में समवर्ती सूची के तहत सूचीबद्ध है, जिसका अर्थ है कि बिजली मामलों में केंद्र और राज्य सरकारों के समान अधिकार हैं। इस संशोधन विधेयक के माध्यम से केंद्र सरकार बिजली मामलों में राज्यों के अधिकार छीन रही है, तथा बिजली वितरण और टैरिफ निर्धारण में केंद्र सरकार का सीधा हस्तक्षेप होगा, जो संघीय ढांचे और संविधान की भावना के विरुद्ध है।
उप्र में बिजली के निजीकरण के विरोध में देशभर के बिजलीकर्मी लामबंद
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