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फार्मेसिस्ट फेडरेशन ने पूरे सप्ताह जागरूकता अभियान चलाया

चौथा राष्ट्रीय फार्माकोविजिलेंस सप्ताह 17 से 23 सितंबर तक

लाइव सत्यकाम न्यूज,लखनऊ : इंडियन फार्माकोपिया कमीशन के निर्देशन में औषधियों के प्रतिकूल प्रभाव को रिपोर्ट करने की संस्कृति का निर्माण करने हेतु फार्मेसिस्ट फेडरेशन द्वारा किए गए अपील पर पूरे उत्तर प्रदेश में अनेक कार्यक्रम आयोजित किए , जिसका समापन आज बाबू सुंदर सिंह कॉलेज ऑफ फार्मेसी में आयोजित भव्य समारोह में किया गया जिसमें फार्मेसिस्ट फेडरेशन के अध्यक्ष सुनील यादव द्वारा अपना व्याख्यान दिया गया और निदेशक डॉक्टर आलोक शुक्ला के निर्देशन में विभिन्न कार्यक्रम संपन्न हुए ।
इसके पूर्व विभिन्न संस्थानों के साथ प्रदेश सरकार के एफ एम रेडियो जय घोष और आकाशवाणी सहित अनेक चैनलों पर वार्ताएं प्रसारित की गईं ।
कल प्रयागराज में एक सेमिनार आयोजित हुआ जिसमे मंडल के फार्मेसिस्ट शामिल थे, आज डॉक्टर राम मनोहर लोहिया अवध विश्विद्यालय में आयोजित वेबिनार को भी श्री सुनील यादव के साथ निदेशक डॉक्टर शैलेंद्र, प्रो विजय , प्रो अजय शुक्ला, प्रो विष्णु,प्रो कुणाल ने भी संबोधित किया ।
जनता को यह बताने का प्रयास किया गया कि यदि कोई भी दवा गलत प्रतिक्रिया देती है तो टोल फ्री नंबर 1800-180-3024 या पीवीपीआई ऐप पर रिपोर्ट करिए । कोई भी स्वास्थ्य प्रदाता या मरीज स्वयं यह रिपोर्ट कर सकता है । इसमें मरीज की गोपनीयता का पूरा ध्यान रखा जाता है ।
यह मरीजों की सुरक्षा के लिए प्रभावी हथियार होगा ।
यादव ने बताया कि “रोगी सुरक्षा के लिए एडीआर रिपोर्टिंग संस्कृति का निर्माण” विषय के साथ भारत में 17 सितंबर से आज तक औषधि और औषधीय सामग्री द्वारा उत्पन्न प्रतिकूल दवा प्रतिक्रिया (एडवर्स ड्रग रिएक्शन) को रिपोर्ट करने के प्रति जागरूकता लाने के उद्देश्य से फार्माकोविजिलेंस सप्ताह का आयोजन किया गया ।
फेडरेशन ने उत्तर प्रदेश सरकार से भी अनुरोध किया है कि ग्रामीण क्षेत्र के जनप्रतिनिधियों प्रधानों, आशा, आंगनबाड़ी आदि तक जागरूकता पहुंचाने हेतु व्यापक कार्ययोजना बनाई जाए, जिससे औषधियों के दुष्प्रभाव से मरीज को बचाया जा सके । मोबाइल PvPI ऐप या फोन से दवा की प्रतिकूल प्रतिक्रिया रिपोर्ट करें।

यदि कोई भी दवा गलत प्रतिक्रिया देती है तो टोल फ्री नंबर 1800-180-3024 या पीवीपीआई ऐप पर रिपोर्ट करिए । कोई भी स्वास्थ्य प्रदाता या मरीज स्वयं यह रिपोर्ट कर सकता है । इसमें मरीज की गोपनीयता का पूरा ध्यान रखा जाता है ।
यह मरीजों की सुरक्षा के लिए प्रभावी हथियार होगा ।
आम जनता एवं फार्मासिस्टों के नाम एक अपील करते हुए स्टेट फार्मेसी काउंसिल उत्तर प्रदेश के पूर्व चेयरमैन एवं फार्मेसिस्ट फेडरेशन के अध्यक्ष सुनील यादव ने बताया कि “रोगी सुरक्षा के लिए एडीआर रिपोर्टिंग संस्कृति का निर्माण” विषय के साथ भारत में एक सप्ताह तक औषधि और औषधीय सामग्री द्वारा उत्पन्न प्रतिकूल दवा प्रतिक्रिया (एडवर्स ड्रग रिएक्शन) को रिपोर्ट करने के प्रति जागरूकता लाने के उद्देश्य से फार्माकोविजिलेंस सप्ताह का आयोजन होगा । फार्मेसिस्ट फेडरेशन पूरे सप्ताह जागरूकता कार्यक्रम संचालित करेगा ।
राष्ट्रीय समन्वय केंद्र- फार्माकोविजिलेंस प्रोग्राम ऑफ इण्डिया (PvPI), भारतीय फार्माकोपिया आयोग 17 से 23 सितंबर 2024 द्वारा चौथा राष्ट्रीय फार्माकोविजिलेंस सप्ताह की घोषणा की गई है । इस सप्ताह सभी स्वास्थ्य प्रदाताओं एवं सभी फार्मेसी शिक्षण संस्थानों में विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन करते हुए जागरूकता पैदा की जाएगी ।

एक बड़ी घटना का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि थैलिडोमाइड ट्रेजेडी को 20वें शताब्दी के वर्ष 1950 से 1960 दशक की सबसे बड़ी चिकित्सा त्रासदी माना जाता है, गर्भवती महिलाओं में थैलिडोमाइड को जर्मनी की दवा कंपनी ने मॉर्निग सिकनेस और उल्टी रोकने के लिए प्रस्तुत किया था, दवा कंपनी, द्वारा इसे गर्भवती महिलाओं के लिए सुरक्षित और गैर-नशे की दवा के रूप में प्रचारित किया गया था। थैलिडोमाइड जल्दी ही यूरोप, एशिया, ऑस्ट्रेलिया, और अन्य देशों में लोकप्रिय हो गई और लगभग 46 देशों में बेची जाने लगी। लेकिन बाद में पाया गया कि लगभग 10000 से अधिक ऐसे शिशु पैदा हुए जिनमे फोकोमेलिया (Phocomelia) पाया गया, नवजात शिशुओं के अंग या तो पूरी तरह से विकसित नहीं होते थे या बहुत छोटे होते थे। कई बच्चों के हाथ और पैर विकृत हो जाते थे या उनमें हड्डियों का विकास ठीक से नहीं हो पाता था। Unme अन्य शारीरिक विकृतियाँ जैसे कि हृदय, गुर्दे, और नेत्र दोष भी देखे गए। जिन बच्चों को ये समस्याएं हुईं, उनमें से अधिकांश या तो मर गए या फिर गंभीर विकलांगताओं के साथ जीवन बिताने को मजबूर हो गए। इसके बाद ज्यादातर देशों ने इस दवा पर रोक लगाई । इस घटना के कारण, दुनिया भर में (दवाओं की निगरानी और सुरक्षा) की आवश्यकता को मान्यता दी गई जो आज और प्रासंगिक हो गई है । अब आयूष विभाग ने आयुर्वेदिक औषधियों का भी ADR रिपोर्टशुरू कर दिया है ।

क्या है फार्माकोविजिलेंस ?
फार्माको का अर्थ है औषधि से संबंधित
विजिलेंस का अर्थ है सतर्कता
अर्थात औषधि एवं औषधीय सामग्री के प्रति सतर्क रहना ।

फार्माकोविजिलेंस दवाओं के उपयोग से जुड़े प्रतिकूल प्रभावों और जोखिमों की निगरानी, मूल्यांकन, पहचान, और रोकथाम की प्रक्रिया है। इसका मुख्य उद्देश्य दवाओं के अवांछित प्रतिक्रियाओं का पता लगाना और सुनिश्चित करना है कि दवाएं प्रभावी रहें और मरीज सुरक्षित रहे । फार्माकोविजिलेंस कार्यक्रम के तहत स्वास्थ्य एजेंसियां और दवा निर्माता, फार्मेसिस्ट, स्वास्थ्य प्रदाता आदि दवाओं पर निगरानी रखते हैं ।
हम जानते हैं कि प्रत्येक औषधि का साइड इफेक्ट होता है जो पूर्व से ज्ञात होता है जिसे हम जानते हैं, पूर्व से इसकी रिपोर्टिंग हो चुकी होती है, परंतु कभी-कभी साइड इफेक्ट के अलावा भी अनेक अन्य प्रतिकूल प्रतिक्रियाएं एडवर्स ड्रग रिएक्शन (ए डी आर) के रूप में आती है या देखी जाती है, जिस पर नियमित रूप से नजर रखनी आवश्यक है । इंडियन फार्माकोपोयिया कमीशन द्वारा फार्माकोविजिलेंस प्रोग्राम ऑफ इंडिया संचालित किया जा रहा है जिसके अंतर्गत पूरे भारत में दवाओं के एडवर्स ड्रग रिएक्शंस को रिपोर्ट करने की सलाह दी जाती है तथा रिपोर्ट प्राप्त होने पर कमेटी द्वारा आवश्यक निर्णय लिया जाता है कई बार उस ड्रग की बिक्री और निर्माण पर प्रतिबंध भी लगाया जाता है जो कभी आंशिक हो सकता है या कभी पूर्ण रूपेण हो सकता है ।

क्या है पीवीपीआई? इसे भारत में दवा सुरक्षा निगरानी कार्यक्रम कहा जाता है, जिसे 2010 में शुरू किया गया था। इसका उद्देश्य देश में दवाओं से संबंधित प्रतिकूल प्रभावों (ADRs) की निगरानी करना और दवाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करना है।
पीवीपीआई की कार्यविधि –

  1. ADR रिपोर्टिंग केंद्रों की स्थापना :
  • पीवीपीआई के तहत देशभर में विभिन्न मेडिकल कॉलेजों, अस्पतालों और संस्थानों में एडवर्स ड्रग रिएक्शन मॉनिटरिंग सेंटर्स (AMCs) स्थापित किए गए हैं।
  • ये केंद्र स्वास्थ्य सेवा पेशेवरों, फार्मासिस्टों और आम जनता से प्रतिकूल दवा प्रतिक्रियाओं (ADRs) की रिपोर्ट प्राप्त करते हैं।
  1. ADR रिपोर्टिंग और डेटा संग्रहण:
    स्वास्थ्य पेशेवर या सेवा प्रदाता, जैसे डॉक्टर, नर्स और फार्मासिस्ट, ADRs की रिपोर्ट करते हैं। मरीज और आम जनता भी ADR रिपोर्ट कर सकते हैं। इसके लिए, जिसे पीवीपीआई की वेबसाइट, मोबाइल ऐप (PvPI), या टोल-फ्री नंबर के माध्यम से सबमिट किया जा सकता है।

रिपोर्ट की गई जानकारी को केंद्रीय रूप से एकत्र किया जाता है और विश्लेषण के लिए (आई पी सी) में भेजा जाता है, जो पीवीपीआई का राष्ट्रीय समन्वय केंद्र (NCC) है।

  1. डेटा का विश्लेषण और मूल्यांकन:
  • प्राप्त की गई ADR रिपोर्ट्स को IPC द्वारा विश्लेषित किया जाता है। यह देखा जाता है कि कोई दवा किस प्रकार से प्रतिकूल प्रभाव पैदा कर रही है और क्या इसमें कोई नवीन जोखिम पाया गया है।
  • यदि कोई गंभीर समस्या पाई जाती है, तो IPC उस पर आगे की कार्रवाई के लिए इस रिपोर्ट को सेंट्रल ड्रग्स स्टैंडर्ड कंट्रोल ऑर्गेनाइजेशन (CDSCO) को भेजता है।
  1. रिपोर्टिंग और जोखिम प्रबंधन :
  • IPC रिपोर्ट की गई ADRs को, जो कि WHO का इंटरनेशनल ADR डेटाबेस है, में सबमिट करता है।
  • यदि किसी दवा में गंभीर जोखिम पाया जाता है, तो CDSCO द्वारा दवा पर प्रतिबंध लगाना, उपयोग में बदलाव करना, या चेतावनी जारी करना जैसे उपाय किए जाते हैं।
  1. प्रशिक्षण और जागरूकता:
  • स्वास्थ्य पेशेवरों और आम जनता में ADR रिपोर्टिंग की जागरूकता बढ़ाने के लिए प्रशिक्षण सत्र, कार्यशालाएं, और सेमिनार आयोजित किए जाते हैं।
  • पीवीपीआई स्वास्थ्य पेशेवरों को प्रशिक्षण देता है ताकि वे ADRs की रिपोर्टिंग और विश्लेषण को बेहतर ढंग से समझ सकें।
  1. मोबाइल एप्लीकेशन और टोल-फ्री हेल्पलाइन :
  • पीवीपीआई ने ADR रिपोर्टिंग के लिए एक मोबाइल एप्लिकेशन (PvPI) लॉन्च किया है, जिसे कोई भी उपयोग कर सकता है।
  • इसके अलावा, ADR रिपोर्टिंग के लिए एक टोल-फ्री नंबर (1800-180-3024) भी उपलब्ध है, जहां से लोग प्रतिकूल प्रभावों की सूचना दे सकते हैं।
  1. निरंतर निगरानी:
  • ADR रिपोर्ट्स की नियमित निगरानी की जाती है ताकि नई समस्याओं का समय पर पता लगाया जा सके और उन्हें रोकने के लिए आवश्यक कदम उठाए जा सकें।
  1. सुधार और कार्रवाई
  • ADR रिपोर्ट्स के आधार पर अगर किसी दवा को हानिकारक पाया जाता है, तो उसकी सुरक्षा प्रोफ़ाइल को सुधारने के लिए उचित कार्रवाई की जाती है, जैसे उपयोग के निर्देशों में बदलाव या बाजार से दवा को हटाना।

मटेरिओविजिलेंस क्या है ?
दवाओं के अलावा चिकित्सा उपकरणों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए “मटेरिओविजिलेंस’ शुरू किया गया है। इसका उद्देश्य चिकित्सा उपकरणों से संबंधित प्रतिकूल घटनाओं की पहचान, रिपोर्टिंग, मूल्यांकन, और रोकथाम करना है। यह कार्यक्रम उन उपकरणों की निगरानी करता है जिनका उपयोग चिकित्सा उपचार या निदान में किया जाता है, ताकि उनके सुरक्षित और प्रभावी उपयोग को सुनिश्चित किया जा सके।

भारत में मटेरिओविजिलेंस कार्यक्रम के नाम से जाना जाता है।
फेडरेशन ने अपील की है कि अपने मोबाइल में पीवीपीआई ऐप जरूर इंस्टॉल कर लें, और इसका प्रयोग करें । जिससे मरीजों की जान बढ़ाने वाली दवाओं का सही प्रयोग किया जा सके ।  

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